Thursday, December 9, 2010

कोशी त्रासदी के दो वर्ष - 17 अगस्त, 2010
- डा॰ जगन्नाथ मिश्र

18 अगस्त, 2008 में कोषी की बाढ़ के रूप में इतनी बड़ी आपदा देष ने पहलीबार झेली है। 5 जिलों (सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, अररिया और पूर्णियां) के 35 प्रखंडों के 412 पंचायतों, जिनमें 993 गाँव सन्निहित है, में कुल 33,45,545 की आबादी प्रभावित हुई। कुल 3,40,742 मकानों की क्षति हुई, 3 लाख हेक्टेयर खेती की क्षति से बालू भर गयी और 7,12,140 पषु भी प्रभावित हुए। सरकार को वृहद् पैमाने पर लोगों को बचाने एवं सहाय्य के कार्य करने पड़े तथा अभी भी बहुत बड़े पैमाने पर पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण का कार्य करना पड़ेगा। इसके लिए राज्य सरकार ने 14 हजार 800 करोड़ की योजना बनाई है। प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह से अन्य राज्यों की तर्ज पर कोषी पैकेज विमुक्त करे। परंतु अभीतक पुनर्वास कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। केन्द्र सरकार को तुरंत पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास के लिये 14,800 करोड़ रूपये की राषि स्वीकृत करनी चाहिये। 18 अगस्त, 2008 को पूर्वी एफलाॅक्स बांध नेपाल में कुसहा के समीप टूटने के पश्चात भयंकर त्रासदी के उपरांत मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार द्वारा कोषी टूटान (कुसहा टूटान) की मरम्मती का कार्य पूरा कर लिया गया। कोषी नदी के किनारे निर्मित पूर्वी एवं पष्चिमी कोषी तटबंधों के ऊँचीकरण सुदृढ़ीकरण के साथ ही कोषी तटबंध के उपर सड़क निर्माण कार्य का षुभारंभ किया गया है। कोषी पुनर्निर्माण योजना की कड़ी में वीरपुर हवाई अड्डा पर पूर्वी कोषी नहर प्रणाली के विस्तारीकरण, जीर्णोद्धार एवं आधुनिकीकरण का कार्य 750 करोड़ की लागत से प्रारंभ किया गया है। उसके अलावा 85 करोड़ की लागत से कोषी बराज के सभी फाटकों का जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ किया गया है। कोषी त्रासदी से उत्पन्न लोक पीड़ा एवं ललित बाबू द्वारा कराये गये योजना को ध्वस्त देखकर ही कोषी क्षेत्र का व्यापक भ्रमण एवं क्षति का आकलन के उपरांत ही उन्होंने (डा॰ मिश्र) ने कोषी की पुनर्निर्माण के लिए ही अपनी सेवा सौंपी है। मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान द्वारा पूर्व अभियंता प्रमुख और गंगा आयोग के पूर्व अध्यक्ष, श्री गोकुल प्रसाद की अध्यक्षता में गठित 11 सदस्यीय विषेषज्ञ कमिटी से प्रतिवेदन सरकार को सौंपी थीं और वे पुनर्वास तथा पुनर्निर्माण के लिए अनेक सुझाव समय-समय पर केन्द्र और राज्य सरकार को सौंपते रहे हैं। 18 अगस्त, 2008 को कोषी एफलाॅक्स बांध टूटने के कारण कोषी क्षेत्र में हुए प्रलय के चलते कोषी बांध के क्लोजर कार्य षीघ्र पूरा किये जाने, राहत कार्य चलाने, पुनर्वास कार्य एवं कोषी पुनर्निर्माण किये जाने के लिए मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री से लगातार अनुरोध करते रहे हैं। उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार ने बेहतर कोषी बनाने के संकल्प को पूरा करते दिख रहे हैं। अभी हाल में उपलब्ध तथ्यों और सूचनाओं के आधार पर भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने अपने 31 मार्च, 2009 के प्रतिवेदन में यह स्थापित किया है कि कोषी के पूर्वी एफलक्स बांध के कुसहा टूटान के लिए जल संसाधन विभाग पूर्ण रुप से उŸारदायी है। इस टूटान के कारण बिहार राज्य में बड़ी तबाही और बर्वादी हुई। टूटान से कोषी की धारा बदली और पांच जिलों- सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया एवं पूर्णियां की 35 लाख आबादी बूरी तरह प्रभावित हुई। करोड़ों रुपयों की क्षति हुई। 3.5 लाख से अधिक परिवार गृहविहीन हुए। बड़ी मात्रा में धन जन एवं मवेषी की बर्वादी प्रतिवेदित हुई। प्रतिवेदन में जल संसाधन विभाग को इसलिए उŸारदायी ठहराया गया है कि उसने टूटान से पहले ही षीर्ष प्रमण्डल वीरपुर एवं तटबंध प्रमण्डल वीरपुर द्वारा अनुषंसित स्पर एवं तटबंधों के संरक्षण एवं मरम्मति संबंधित प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया। उनके द्वारा अनुषंसित प्रस्तावों को विभाग यदि स्वीकृत किया होता और 2008 के मानसून से पूर्व कोषी तटबंधों विषेषतया पूर्वी तटबंध का क्षरण रोधी कार्य पूरा करा लिया होता तो राज्य को इस त्रासदी से बचाया जा सकता था। कोषी उच्च स्तरीय कमिटी की अनुषंसाओं को यदि समय पर स्वीकार कर लिया गया होता और नेपाल भारत के बीच समन्वय बना होता तो ऐसी विपदा से उस क्षेत्र को बचाया जा सकता था। अबतक यह परंपरा रही है कि संवेदनषील, कमजोर तटबंधों का रख-रखाव एवं संरक्षण कोषी उच्च स्तरीय समिति की अनुषंसाओं के आधार पर मानसून के पूर्व किया जाता रहा है, किन्तु 2008 में टूटान के पहले ऐसा कुछ नहीं किया जा सका। स्थानीय अभियंताओं ने 11 स्थलों पर कार्य करने की अनुषंसा की थी परंतु विभाग ने 11 स्थानों के बदले केवल 5 स्थलों की स्वीकृति प्रदान की। उन अनुषंसाओं में कुसहा का वह स्थान भी सम्मिलित था जहाँ टूटान हुआ। तथ्यों के आलोक में प्रतिवेदन में कहा गया है कि जल संसाधन विभाग की पूरी लापरवाही, कर्तव्यहीनता तथा तत्परता का अभाव प्रमाणित होता है। क्षेत्रीय अभियंताओं की चेतावनी को विभाग ने गंभीरता से नहीं लिया। प्रतिवेदन में काग ने यह स्पष्ट किया है कि हर वर्ष मानसून प्रारंभ के पूर्व ही कटाव निरोधक कार्य पूर्ण करा लिया जाता था। परंतु 2008 में ऐसा नहीं हुआ। प्रतिवेदन में यह भी कहा गया है कि टूटान स्थल नेपाल में स्थित है इसलिये जल संसाधन विभाग के लिये आवष्यक था कि नेपाल से सम्यक समन्वयक स्थापित कर निर्माण कार्य को पूरा कराता सुरक्षा की व्यवस्था करबाता। यह भी विस्मयकारी रहा है कि जून, 2006 के बाद इन दोनों देषों के बीच ऐसे संवेदनषील लोक महत्व विषय पर दोनों देषों के बीच गठित समन्वय समिति की बैठक नहीं हुई। राज्य सरकार ने संपूर्ण प्रकरण (तटबंध के कटान के कारणों तथा भविष्य में पुनरावृति न हो) लोक महत्व को विषय के लिए पटना उच्च न्यायालय के अवकाषप्राप्त मुख्य न्यायाधीष श्री बालिया की अध्यक्षता में जाँच आयोग ब्वउउपेेपवद व िप्दुनपतल ।बज 1952 के अंतर्गत गठित किया है ताकि इस पूरे प्रकरण से संबंधित सारे तथ्य स्पष्ट हो सकें।
लयंकारी बाढ़ के दो वर्ष बाद भी कोषी क्षेत्र की निम्नलिखित समस्याओं को प्राथमिकता दी जाए:-कोषी बाढ़ से क्षेत्र की समस्याएँ:- (1) कृषि योग्य भूमि से होकर नदी की नई धार बनना। (2) कृषि योग्य भूमि पर बालू की रेत जमा होना। (3) फसल की संभावना नुकसान रूप होना। (4) कृषि योग्य भूमि में बीज का अंकुरण नहीं होना। (5) बटाईदारों की समस्या (बटाईदार, ब्याज पर कर्ज लेकर बटाई खेती करते हैं। कर्ज का भार बना हुआ है। इनको कब क्या मिलेगा?) (6) कोषी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र में पेड़ पौधे सूखने की समस्या। (7) पेयजल की समस्या। (8) गृह क्षतिग्रस्त की समस्या। (9) आवासहीनता एवं आवास भूमि की समस्या। (10) घरेलू सामग्री क्षति की समस्या। (11) यातायात बाधित एवं क्षतिग्रस्त। (12) मृत्यु एवं विकलांगता की समस्या। (13) मवेषी क्षति की समस्या। (14) भूख की समस्या। (15) रोजगार (मजदूरी) की समस्या। (16) पलायन की समस्या। (17) अधिक ब्याज दर पर कर्ज कर्ज लेने की विवषता। (18) मानसिक तनाव की समस्या (कोषी बाढ़ पीड़ितों स्थिति) (19) बाल मजदूरों का व्यापार। (20) गर्वभती महिलाओं एवं नवजात बच्चों की समस्या। (21) जानवरों को कम मूल्य पर बेचे जाने की समस्या। (22) वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था। गाँव का बदला भौगोलिक क्षेत्र और पर्यावरण: नेपाल प्रभाग में कुसहा तटबंध टूटा; वहाँ से जब कोषी नदी ने अपनी प्रलयंकारी धाराओं के साथ जब दिषा बदली और वह सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, कटिहार, खगड़िया के जिन क्षेत्रों में अपनी धाराओं में गुजरी तो अपने प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों के जन-जीवन का नक्षा ही बदल कर रख दिया। कोषी नदी अपने साथ लाई बालू (गाद) से यहाँ की जमीनों का पूरा भौगोलिक परिवर्तन कर दिया। कोषी की बाढ़ से यहाँ की जमीनों का प्रकार बदल गया है जो निम्न रूप से श्रेणीबद्ध है: (1) पाक युक्त जमीन: बाढ़ के साथ आई पाक जिसे कृषि वैज्ञानिक पूसा की टीम ने केवल पाक युक्त जमीन नाम दिया जिसमें नमी को बरकरार रखने की क्षमता है, परंतु मिट्टी जाँच के उपरांत उसमें अंकुरण नहीं होता है यदि कहीं होता है तो पौधा 1 से 1-2 सेंटी मीटर का होकर पीला होकर रह जाता है। इस रासायनिक पदार्थों की कमी को दूर कर इनको ठीक किया जा सकता है। फिर हर तरह की फसल इन जमीनों में उगाई जा सकती है। (2) पाक बालू युक्त जमीन: इस जमीन का किस्म एक से तीन इंच तक पाक होता है उसके नीचे बालू ही बालू है। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो ऐसे जमीन में नमी को अत्याधिक समय तक रखने की क्षमता नहीं है। इस प्रकार की जमीनों में अत्यधिक पानी (सिंचाई) की आवष्यकता है। खेत को उर्वरा षक्ति देने वाली फसलें यानी मूंग, मुंगफली, आलू इस प्रकार की फसलें समुचित सिंचाई के बाद उगाई जा सकती है। (3) षुष्क बालू युक्त जमीन: कृषि वैज्ञानिकों की राय में इस प्रकार की जमीन में नमी बरकरार रखने की क्षमता नहीं होती है। इस जमीन में (1 मीटर/ 1 मीटर) गड्ढ़ा खोद कर उसमें बर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी डालकर उसमें आंवला, लिच्ची का पेड़ लगाया जा सकता है, वहीं कद्दू, परवल, तरबूज, ककड़ी आदि की फसलें उगाई जा सकती है।
पर्यावरण: कोषी की बाढ़ आने के पष्चात पर्यावरण में एक बड़े परिवर्तन को यहाँ के लोग महसूस कर रहे हैं। यथा लुप्त प्राय कई पक्षियों की प्रजातियों वापस इस इलाके में दिखाई पड़ने लगी हैं जो यहाँ से लुप्त हो गई थीं तो अब सर्वत्र दिखाई पड़ती हैं। परंतु मानसून में भारी परिवर्तन देखा जा रहा है, जिससे यहाँ के किसान भविष्य को लेकर आषंकित हैं जहाँ हर साल गेहूँ के समय और उसके बाद भारी वर्षा होती थी वहीं इस साल एक बार भी वर्षा जल देखने के लिए यहाँ के किसान तरस गए। कोषी प्रलय में संसाधनों की व्यापक क्षति हुई है। इस क्षति की भारपाई करने एवं इन क्षेत्रों को पहले से बेहतर बनाने के लिए राज्य सरकार ने संकल्प लिया है। इस दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कोषी पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण समिति का गठन किया गया है। जिला स्तर पर जिला प्रभारी मंत्री केी अध्यक्षता में समिति गठित की गई। राज्य सरकार के आग्रह पर केन्द्रीय दल बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की क्षति का आकलन हेतु बिहार आया था। इन दलों को प्रभावित जिलों से क्षति का प्रारंभिक ब्योरा एवं इसके पुनर्निर्माण पर होने वाले खर्च का आकलन कर एक समेकित ज्ञापन राज्य सरकार की ओर से समर्पित किया गया। कुल 14808.59 करोड़ रू॰ का मेमोरेन्डम केन्द्र सरकार, गृह मंत्रालय को समर्पित किया गया, परंतु इसके विरूद्ध अभीतक मात्र 497.35 करोड़ की राषि स्वीकृत की गई है जो असंगत एवं तर्कहीन है।
दो वर्ष के बाद भी कोषी के कहर की मार झेल अभी हजारों परिवार खानाबदोष जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। कोषी के प्रलय ने अधिकांष लोगों के घर को उजाड़ दिया। दलित, महादलितों तथा गरीब के परिवार निर्वासित जिन्दगी गुजारने को मजबूर हैं। खेती की जमीन में बालू होने के कारण दैनिक मजदूरी करने वाले को जीवन चलाना दुभर बना हुआ है। महिला, बच्चे, गर्भवती महिला पौष्टिक भोजन से लगातार वंचित है और अत्यंत पिछड़ी जाति एवं अन्य गरीब परिवार अनेक प्रकार की बीमारी से ग्रसित होना पड़ा है। उन गाँवों में लोग अपने घरों को संवारने में लगे हैं। विस्थापन का दो वर्ष हुआ है। वे लोग जो बहुत ही गरीब हैं और राहत षिविरों में रह रहे थे, वे आवास और रोजगार के अभावों पलायन कर गये हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार उनकी संख्या 10 लाख हो सकता है। बाजारों से सड़क संपर्क सामान्य नहीं होने की वजह से तमाम दिक्कतें आ रही हैं। सरकार ने कोषी आपदा से भवनों, लोक संपतियों एवं आधारभूत संरचनाओं की हुई क्षति का आकलन विस्तृत रूप से अभीतक नहीं कराया है। आकलन के आधार पर पुनर्वास आवष्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। प्रत्येक गाँव स्तर का आकलन अलग-अलग टीम द्वारा कराकर ग्रामीण स्तर पर पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण योजना तैयार की जानी चाहिये। चार लाख से अधिक निजी मकानों, लोक संपतियों एवं अन्य आधारभूत संरचनाओं का पुनर्निर्माण किया जाना है। राज्य सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की आर्थिक योजनाओं को लागू किया जाना है। कारीगरों, उद्यमियों एवं स्वनियोजित व्यक्तियों को अधिकतम लाभ मिल सके। सभी इक्विपमेंट्स, ट्रांसमीषन लाईन तथा ट्रांसफार्मर की बदली करायी जाए ताकि स्टिम में सुधार लाया जा सके। ग्रामीण इलाकों में जलापूर्ति सिस्टम के पुनरूद्धार की कार्ययोजना तुरत ली जाए ताकि स्वस्थ एवं स्वच्छ जलापूर्ति क्षेत्र में लोगों को मिल सके। केन्द्र की राजीव गांधी पेयजल मिषन से विषेष अनुदान प्राप्त किया जा सकता है। इस बाढ़ का प्रभाव इतना व्यापक है कि केवल भूमिहीन तथा गरीब ही पीड़ित नहीं हैं बल्कि मध्यम, निम्न-मध्यम वर्ग एवं सुखी सम्पन्न किसान भी इस प्राकृतिक संकट से बुरी तरह प्रभावित है।
(डा॰ जगन्नाथ मिश्र)

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