Thursday, December 9, 2010

मुसलमानों के आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक हालात में बदलाव आवष्यक - 16 अगस्त, 2010

- डा॰ जगन्नाथ मिश्र

मानवाधिकारों की दृष्टि से भी पिछड़े हुए अल्पसंख्यकों के लिए विषेष प्रयत्न करना राज्य का कर्Ÿाव्य है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1992 में घोषित अल्पसंख्यकों के अधिकार के अनुच्छेद- 2 में सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन में भाग लेने के अधिकार के साथ-साथ आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने के अधिकार को भी स्पष्ट स्वीकृति दी गई है। अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देना किसी भी सभ्य और जागरुक राष्ट्र की पहली पहचान है। गांधीजी ने भी कहा था कि सभ्यता का दावा करनेवाले किसी भी राष्ट्र की कसौटी यही है कि उसने अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह का आचरण या व्यवहार बनाकर रखा है। देष के लोग वस्तुतः कितना स्वतंत्र हैं इसकी परख इस बात से भी होती है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग देष में अपने को कितना सुरक्षित समझते हैं। अल्पसंख्यकों की हालत के संबंध में न्यायमूर्ति सच्चर की रिपोर्ट में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के जो आंकड़े दिए गए हैं वे काफी चिंताजनक हैं और हमारी विकास प्रक्रिया के एक भारी असंतुलन को दर्षाते हैं। यानी देष में न केवल विभिन्न क्षेत्रों और तबकों के बीच बल्कि समुदायों के स्तर पर भी गहरी खाई मौजूद है। सच्चर समिति की रिपोर्ट बताती है कि चाहे षिक्षा का क्षेत्र हो या नौकरियों और कारोबार का, मुसलमान न सिर्फ हिन्दुओं की तुलना में बल्कि दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के मुकाबले भी काफी पिछड़े हुए हैं। कई मायनों में उनकी हालत हिन्दू समाज के अत्यंत पिछड़े एवं दलित तथा आदिवासियों से भी खराब है। देष की कुल आबादी में वे करीब 16.6 फीसद हैं। इसलिए मानवीय तकाजे के अलावा सामाजिक सामंजस्य और राष्ट्रीय एकता की मजबूती के लिहाज से भी उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने के विषेष प्रयास होने चाहिए। इस संदर्भ में सच्चर समिति ने कई सिफारिषें की हैं। सच्चर समिति की रिपोर्ट बताती है कि मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी वाले राज्यों में ही उनकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। इन राज्यों के मुस्लिम बाहुल्य गांव स्कूल, पेयजल जैसी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं तक से वंचित हैं। पढ़ाई कर रहे मुस्लिम बच्चों में से महज चार फीसद मदरसों में जाते हैं। इस बीच मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक समर्थन पाने के लिए तमाम तरह के वादे किए जाते रहे, उनके कल्याण के कुछ कार्यक्रम भी घोषित किए गए। लेकिन ताजा रिपोर्ट से जाहिर है कि इन योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुँचा है। लिहाजा, सच्चर समिति की सिफारिषों के मद्देनजर जो भी कदम उठाए जाएं, समय-समय पर उनके नतीजों की समीक्षा भी होनी चाहिए। सच्चर समिति की रपट ने अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज की आर्थिक, षैक्षणिक और सामाजिक स्थिति के बारे में जो निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं, उन्हें देखते हुए किसी भी लोकतांत्रिक राज्य के लिए यह आवष्यक हो जाता है कि वह इस समाज की स्थिति सुधारने के लिए विषेष प्रयत्न करे। अल्पसंख्यकों की आर्थिक, सामाजिक, षैक्षणिक एवं नियोजन के अध्ययन के लिए भारत सरकार द्वारा गठित सच्चर एवं रंगनाथ मिश्र आयोगों की अनुषंसाओं पर रिपोर्ट प्राप्त होने के तीन वर्ष बाद भी केन्द्र सरकार के स्तर से अनुषंसाओं के संदर्भ में कार्यान्वयन अत्यंत षिथिल बना रहा है जो अत्यंत ही विस्मयकारी है। इन आयोगों ने प्रतिवेदन में कहा था कि अल्पसंख्यकों विषेषकर मुसलमानों की स्थिति अत्यंत दयनीय लगातार बनी रही है। 11वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारुप के समय प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की थी कि देष के साधन पर पहला अधिकार मुसलमान का है। परंतु 11वीं योजना के तीन वर्ष बीतने के बाद भी मुसलमानों के लिए उनकी 16 प्रतिषत आबादी, उनकी गरीबी, उनकी सामाजिक, षैक्षणिक एवं नियोजन में उनके निम्नतम साझेदारी के बावजूद भी सच्चर एवं रंगनाथ मिश्र के अनुषंसाओं के कार्यान्वयन के लिए लम्बित है। षिक्षा रोजगार मद में अधिक व्यय की अपेक्षा है और सरकारी सेवाओं में आबादी के अनुपात में उनमें प्रतिनिधित्व को सुनिष्चित करने के दृष्टि से रंगनाथ मिश्र आयोग की अनुषंसाओं के आलोक में मुसलमानों को अन्य पिछड़े वर्गों की तरह संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अंतर्गत आरक्षण सुनिष्चित की जाए। अब जब उच्चतम न्यायालय ने सामाजिक षैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर मुसलमानों को अन्य पिछड़े वर्गों की तरह आरक्षण को जायज ठहरा दिया है। देष में अल्पसंख्यकों की आबादी 16.6 फीसदी है। इसलिए यह सचमुच गौर करने की बात है कि आजादी के 62 साल बीतने के बाद भी आबादी के इतने बड़े हिस्से की भागीदारी राष्ट्र की भलाई से जुड़े कामों में उतने से भी कम क्यों हो गई जितनी आजादी हासिल करने के समय थी। कुछ ऐसा देखनें में आता है कि अल्पसंख्यकों में निराषा छा गयी है कि उन्हें षिक्षण संस्थानों में, सरकारी सेवाओं में, बैंक के क्षेत्र में, प्राइवेट कारोबार में कितनी कम नौकरी मिली और पार्लियामेंट तथा राज्य विधान मंडल में कितना कम हिस्सेदारी मिली। जिन राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय स्तर के सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं की सरकार से संरक्षण मिलता है और तरह-तरह की सहायता भी मिलती है उनमें अल्पसंख्यकों का कम प्रतिनिधित्व है। इन हालात को देखते हुए अब अल्पसंख्यक समुदाय को भी सोचना चाहिए तथा देषवासियों को देखना चाहिए कि सुधार किस तरह लाये जाएं। देष में जो विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं उनसे मिलनेवाले फायदे अल्पसंख्यकों को भी पूरे तौर पर सही ढंग से मिले। मुसलमानों को मुख्य धारा में षामिल करने के लिए एवं उन्हें षैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक एवं रोजगार में समानता लाने के उद्देष्य की प्राप्ति के लिए षिक्षा पर सबसे अधिक बल देना होगा और षिक्षा पर बड़े पैमाने पर व्यय करना पड़ेगा। मुसलमान बाहुल्य जिलों एवं राज्यों में आवासीय विद्यालय एवं महाविद्यालय की स्थापना को प्राथमिकता देनी होगी। राजनीति से उपर उठकर मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक, षैक्षणिक एवं नियोजन में बढ़त स्थापित करने का प्रयत्न करनी चाहिए।

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