Friday, December 10, 2010

दिनांक 27 जुलाई, 2010 को नेचुरल हेल्थ मिषन के तत्वावधान में इंडियन मेडिकल एसोसियेषन हाॅल में प्रथम नेषनल मेगा हेल्थ सेमिनार में डा॰ जगन्नाथ मिश्र का सम्बोधन।
दुनिया भर में स्वस्थ जीवन, सुदीर्घ आयु और इनके लिए जरूरी स्वास्थ्य एवं पोषण सुविधाओं की उपलब्धता को विकास का मापदंड माना गया है। वस्तुतः किसी भी देष-समाज के समग्र आर्थिक क्रियाकलापों की नाभि उसमें रहने वाले मनुष्य की षारीरिक और मानसिक बेहतरी होती है। यह बेहतरी न केवल व्यक्तियों को निजी उपलब्धियां दिलाने का माध्यम बनती है, बल्कि वह देष-समाज को भी नई ऊंचाईयां और उपलब्धियां प्रदान करती है। लेकिन यह तभी संभव है जब उस देष में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएं विष्वसनीय और सहज-सुलभ हों। अतः किसी भी आधुनिक देष की सरकार के लिए अपने नागरिकों को स्तरीय, प्रामाणिक, विष्वसनीय और सर्वसुलभ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना प्राथमिक जिम्मेदारी बन जाती है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही स्वास्थ्य को सामाजिक-आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण घटक मानते हुए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के प्रयास किए गए हैं।
रोटी, कपड़ा और मकान के बाद मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण आवष्यकता अच्छे स्वास्थ्य की होती है। इसीलिए कहा गया है, ‘‘स्वस्थ षरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।’’ इस कथन से जीवन में स्वास्थ्य की भूमिका स्वयं प्रमाणित होती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, असमानता, भौगोलिक दूरी, प्राकृतिक विविधता, षैक्षिक पिछड़ापन, अंधविष्वासों की जकड़न जैसी विपरीत परिस्थितियों में सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आजादी के बाद से ही भारत सरकार इस चुनौती पर काबू पाने का प्रयास कर रही है। पिछले छह दषकों में देष ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय उपलब्यिाँ हासिल की हैं जैसे औसत आयु में दुगुनी वृद्धि, माता एवं षिषु मृत्यु दर में कमी, कई गंभीर बीमारियों का खात्मा। इस दौरान सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं का देषव्यापी विस्तार हुआ। असाध्य रोगों के लिए अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गए। निवारक टीकों का विकास किया गया और देषव्यापी टीकाकरण अभियान चले। इन उपलब्धियों के बाद भी देष स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत पीछे है। विकसित देषों की बात तो दूर भारत विकासषील देषों में भी पिछली पंक्ति में नजर आता है। पिछले एक दषक में बढ़ती जनसंख्या व बीमारियों के अनुपात में स्वास्थ्य सुविधाएं घटी हैं। इस दौरान बेड घनत्व (प्रति हजार जनसंख्या पर अस्पतालों में बेड की उपलब्धता) 7 प्रतिषत कम हो गया। देष के छह राज्यों (मध्य प्रदेष, उड़ीसा, उत्तर प्रदेष, बिहार, जम्मू व कष्मीर, हरियाणा) में बेड की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत (0.86 बेड प्रति हजार) का दो-तिहाई है। चार दक्षिणी राज्यों (कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेष) में देष की 20 प्रतिषत जनसंख्या निवास करती है लेकिन यहाँ देष के एक-तिहाई डाक्टर व 40प्रतिषत नर्सें हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य उपकेन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में स्वास्थ्यगत आधारभूत ढांचे की भारी कमी है। इन केन्द्रों में 62 प्रतिषत विषेषज्ञ चिकित्सकों, 49 प्रतिषत प्रयोगषाला सहायकों ओर 20 प्रतिषत फार्मासिस्टों की कमी है। यह कमी दो कारणों से है- पहला, आवष्यकता की तुलना में स्वीकृत पद कम हैं। दूसरा, बेहतर कार्यदषा की कमी और सीमित अवसरों के कारण योग्य चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के प्रति अनिच्छुक रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्यगत सुविधाओं की कमी का एक बड़ा कारण बिजली, सड़क, परिवहन के साधनों की कमी है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की पहुँच बनाने के उद्देष्य से 1983 की स्वास्थ्य नीति में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की नीति अपनाई गई। इसका परिणाम यह हुआ कि निजी क्षेत्र का तेजी से विस्तार हुआ। आज देष में 15 लाख स्वास्थ्य सुविधा प्रदाता हैं जिनमें से 13 लाख प्रदाता निजी क्षेत्र से संबंधित है। ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाई, प्रषिक्षित कर्मचारियों, जाँच सुविधाओं और उचित प्रबंधन का भारी अभाव है। देष की मात्र 12 प्रतिषत जनसंख्या स्वास्थ्य बीमा सुविधा लेती है। यद्यपि निजी स्वास्थ्य बीमा सेवा 40 प्रतिषत वार्षिक की गति से बढ़ रही है फिर भी जागरूकता की कमी, ऊँची प्रीमियम दर जैसे कारणों से देष की विषाल जनसंख्या इन सुविधाओं का लाभ नहीं ले पाती। किसी रोगी को अस्पताल में दाखिल करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 19 किलो मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि षहरी क्षेत्रों में 6 किलो मीटर। सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 5.9 किलो मीटर तथा षहरी क्षेत्रों में 2.2 किलो मीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। देष की 72 प्रतिषत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं दयनीय दषा में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में झोलाछाप डाक्टर अपनी-अपनी दुकान सजाकर बैठे हैं तथा ग्रामीणों को लूट रहे हैं। कई बार ये अर्थ का अनर्थ कर देते हैं जिससे रोगी मौत के मुंह में चले जाते हैं। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की संरचना तो विद्यमान है लेकिन आवष्यक सुविधाएं (डाक्टर, नर्स, जाँच मषीनें) नदारद हैं।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन की षुरूआत 12 अप्रैल, 2005 को की गई। इसका उद्देष्य दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तक सस्ती, सुगम और उच्च गुणवत्ता युक्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना है। इस मिषन के तहत प्रतिकूल स्वास्थ्य सुविधाएं संतोषजनक नहीं हैं, उनपर विषेष ध्यान दिया जाना आवष्यक है। मिषन का उद्देष्य समुदाय के स्वामित्व के अधीन पूर्णतया कार्यषील विकेन्द्रित स्वास्थ्य प्रणाली की स्थापना की जाए ताकि ग्रामीण सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग के वर्तमान अनुपात को 20 प्रतिषत से बढ़ाकर 75 प्रतिषत किया जा सके। इसमें स्वास्थ्य रक्षा के लिए सहायक गतिविधियों पर भी ध्यान दिया जाए। जैसे पानी, षिक्षा, पोषण, सामाजिक और लिंग समानता। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलू उत्पाद का 2-3 प्रतिषत खर्च किया जाए जो फिलहाल 0.9 प्रतिषत है। इस क्षेत्र में केन्द्र सरकार अपना बजट बढ़ा रही है लेकिन राज्य सरकार को भी अपने-अपने स्वास्थ्य बजट में प्रतिवर्ष कम से कम 10 प्रतिषत वृद्धि करनी चाहिए। वर्तमान समय में स्वास्थ्य के क्षेत्र में केन्द्र और राज्य सरकारों के खर्च का अनुपात 80ः20 है। आवष्यकता यह है कि राज्यों के स्वास्थ्य विभाग इस मिषन का निर्बाध रूप से चलाने के लिए धन के प्रवाह को बढ़ायें। वर्तमान समय में राज्य को विŸाीय कमी है, इसलिए धन का आवंटन समय पर नहीं हो पा रहा है। इस मिषन के प्रभावी क्रियान्वयन में विŸा का अभाव बाधा है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन में आयुष (अर्थात् आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी) को चिकित्सा प्रणाली की मुख्यधारा में लाया जाए। ये सुविधाएं न केवल सहज सुलभ व सस्ती हैं अपितु छोटी-मोटी बीमारियों में अचूक लाभ दे सकती है। आयुष विभाग एक ऐसी कार्यनीति चलावे जिसमें स्वास्थ्य उपकेन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर आयुष का भरपूर इस्तेमाल किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण के उपयुक्त प्रयासों के बाद भी गाँव और षहर के बीच की खाई निरंतर बढ़ती जा रही है। इसका कारण है कि भारत में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च विष्व में सबसे कम है जबकि निजी खर्च के मामले में भारत विष्व का अग्रणी देष है। निजी खर्च नगरों एवं महानगरों तक सीमित है। उदारीकरण के बाद से स्वास्थ्य पर निजी खर्च में तेजी से वृद्धि हुई है। पिछले एक दषक में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च में निजी क्षेत्र की भागीदारी 60 प्रतिषत से बढ़ कर 80 प्रतिषत हो गई है। इससे गाँव और षहर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। निजी क्षेत्र के तीव्र प्रसार के पीछे जहाँ सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं व प्रबंधन की कमी है वहीं लोगों की मानसिकता भी दोषी है। दरअसल, लोगों में यह धारणा गहरे पैठ गई है कि अच्छा इलाज सिर्फ निजी अस्पतालों में ही हो सकता है। इसी सोच का लाभ निजी स्वास्थ्य क्षेत्र उठा रहा है। परंपरागत बीमारियों के साथ-साथ संक्रामक बीमारियों के फैलाव और बुजुर्गों की स्वास्थ्य रक्षा ने भारतीय चिकित्सा क्षेत्र के समक्ष नई चुनौतियों को प्रस्तुत किया है। संक्रामक बीमारियों का फैलता जाल भारत के लिए एक बड़ी आर्थिक एवं मानव संसाधन संबंधी हानि हो सकता है। असमानता, गरीबी, स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित पहुँच के कारण नई-पुरानी बीमारियाँ ग्रामीणों के जीवन को दुष्कर बना रही हैं। इन परिस्थितियों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में गाँव व षहर के बीच की बढ़ती खाई निष्चित रूप से चिंता का विषय है। इस खाई को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ बनाकर ही पाटा जा सकता है। किन्तु कतिपय आधारभूत समस्याएं अब भी यथावत हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल, परिवहन तथा संचार साधनों की कमी, चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कार्मिकों का ग्रामीण क्षेत्रों में कम ठहराव, प्रोन्नति की क्षीण संभावना एवं विŸाीय संसाधनों की कमी इत्यादी समस्याएं ग्रामीण स्वास्थ्य एवं विकास को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। निर्धनता तथा सामाजिक पिछड़ापन जटिल समस्याएं हैं। सम्पूर्ण विकास से संबंधित सभी क्षेत्रों की कल्याणकारी विकास योजनाओं का एकीकरण कर दिया जाए तो सामाजिक-आर्थिक विकास का लक्ष्य बेहतर ढंग से तथा षीघ्र प्राप्त किए जा सकेंगे। इसके लिए जहाँ एक ओर केन्द्र व राज्य सरकारों को समन्वित ढंग से प्रयास करने होंगे वहीं जनसामान्य के लिए जरूरी हो गया है कि हम अपनी जीवनषैली में सुधार लायें। नियमित व्यायाम और संतुलित खान-पान को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनायें। अपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखें। दूषित भोजन खाने से बचें। यही नहीं, हमें अपनी प्राचीन अमूल्य धरोहरों के महत्व को भी नए सिरे से समझना होगा। लेकिन वास्तविकता यही है कि आज के भौतिकवादी युग में हर आदमी केवल एक-दूसरे से आगे निकलने और पैसा कमाने की होड़ में जुटा है और ऐसा वह अपने स्वास्थ्य की कीमत पर करने से भी नहीं चुक रहा। षहरों में भौतिकवाद लोगों के स्वास्थ्य को निगल रहा है तो गाँवों में निरक्षरता, गरीबी और अंधविष्वास के पसरे पाँवों के कारण आम ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पा रहा।
(डा॰ जगन्नाथ मिश्र)

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